Adam Gondvi/ अदम गोंडवी
- misal writez
- Dec 23, 2020
- 2 min read
Updated: May 6, 2022
वो कवि जिन्होंने “ग़ज़ल” को माशूका के रूमानी जलवों से निकालकर बेबस की शिकन तक ले गया।
“जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो”
(पूरी कविता 1. नीचे पढ़ सकते हैं)
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प्रख्यात जनवादी कवि अदम गोंडवी जी (असली नाम: रामनाथ सिंह) उत्तर प्रदेश के गोंडा जिला के गांव आंटा गजराज पुरवा आज भी उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है।
गोंडवी जी अपने गांव के पगडंडियों वाले रास्ते पता कुछ प्रकार बताया:
“खुदी सुकरात की हो याकि हो रूदाद गांधी की
सदाकत जिंदगी के मोर्चे पर हार जाती है।
फटे कपड़ों में तन ढांके गुज़रता हो जहाँ कोई
समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है।”
उन्होंने अपनी लेखनी के द्वारा ताउम्र सामंती व्यवस्था, सत्ता की ताक़त पर चोट की और उसके झूठ को बेनकाब किया। उनको सुनने वाले बताते हैं कि गोंडा का ये शायर जब अपने बगावती जज्बात से भरे शेर पढ़ता था तो लगता था कि एक पल में सारी व्यवस्था को बदल देना चाहता है। उनकी कविता हमेशा ही गरीब, दलित , शोषित- वंचितों और समाज के अंतिम कतार के लोगों का मुखर आवाज़ बनकर उठा।
आइये हम उस महान जनकवि की कविताओं को पढ़ते हैं:-
1. भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो
जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
मुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो
गंगाजल अब बूर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिशनगी को वोदका के आचमन तक ले चलो
ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धिखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो
Story By: मिसाल 23Dec2020
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