Bashir Badr / बशीर बद्र
- misal writez
- Dec 19, 2020
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Updated: Dec 30, 2020
'निकल आए इधर जनाब कहां, रात के वक़्त आफ़ताब कहां'... बशीर बद्र. 7 साल की उम्र से लिख रहे हैं. ख़यालों की दुनिया की बातें. ज़िंदगी की फिलॉसफी पर, मोहब्बत पर, जिंदगी के चरित्र पर, ग़जल-शायरी को इबादत मानने वाले 85 साल के हो गए हैं और अपना लिखा ही भूल गए हैं। कोई अता है उनका लिखा ही गाता है तो वह आगे की लाइन गाकर तारीफ़ कर देते हैं. ये भूल जाते हैं कि यह उन्हीं से निकल कर तो फ़िजाओं में बह रहा है।
मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
अयोध्या में 15 फरवरी 1935 को पैदा हुए बशीर बद्र (पुरा नाम : सैयद मुहम्मद बशीर) ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की। कहा जाता है कि उन्होंने 7 बरस की उम्र से ही शेरो-शायरी शुरू कर दी थी। उन्हें 1999 में पद्मश्री और उर्दू के साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। उनकी कविताएं और शेर अंग्रेजी और फ्रेंच में भी अनुवाद किए गए हैं।
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है बेवफ़ाई कभी कभी करना
Gazab...