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John Elia/ जॉन एलिया

  • Writer: misal writez
    misal writez
  • Dec 14, 2020
  • 2 min read

Updated: Dec 23, 2020


आज मैं बात करना चाहूंगा पाकिस्तान के मशहूर शायर जॉन एलिया के बारे में जॉन एलिया मूल रूप से अमरोहा के थे, वही अमरोहा जो आम और रोहों के लिए मशहूर है। जॉन एलिया खुदरंग शायर के रूप में जाने जाते हैं। एक ऐसे शायर जिसका रंग सिर्फ उन्हीं के पास है। मुशायरा में स्टेज पर सिगरेट सुलगाते हुए शायरी कहने की कला सिर्फ एक ही शख्स के पास थी वो थे जनाब जॉन एलिया, जिसे बदनाम शायर भी कहा गया। वैसे तो जॉन एलिया के बारे में कई मशहूर किस्से हैं लेकिन एक किस्सा तब का है जब जॉन ने ये शेर कहा कि मेरे कमरे का क्या बंया कि यहां खून थूंका गया है शरारत में…




उर्दू के गुलशन में कई जादुई खुशबू वाले फूल महके. ऐसे ही एक मकबूल फूल को दुनिया ने शायर जौन एलिया के नाम से जाना. जनाब के कहे शेर आज भी सोशल साइट्स पर ट्रेंड करने लगते हैं. 14 दिसंबर 1931 को जन्मे जॉन एलिया साहेब का  8 नवंबर, 2002 में इंतकाल हो गया था. आइए करीब से जानिए इस शायर और उसके अकेलेपन से भरे अशआरों को:

जौन साहेब यूपी के अमरोहा में पैदा हुए थे. पिता अल्लामा शफीक हसन एलिया जाने-माने विद्वान और शायर थे. पांच भाइयों में सबसे छोटे जौन एलिया ने 8 साल की उम्र में पहला शेर कहा. इंडिया से मुहब्बत थी. लेकिन बंटवारा हमारे नसीब में लिखा जा चुका था. बंटवारे के 10 साल बाद न चाहते हुए जौन पाकिस्तान के कराची जा बसे.



कुछ मशहूर शायरी :

“ मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं ”
मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को
हम को यारों ने याद भी न रखा 'जौन' यारों के यार थे हम तो

बहुत नज़दीक आती जा रही हो

बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या”





ग़ज़ल:

तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो


तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो तुम्हारे बा'द भला क्या हैं वअदा-ओ-पैमाँ बस अपना वक़्त गँवा लूँ अगर इजाज़त हो तुम्हारे हिज्र की शब-हा-ए-कार में जानाँ कोई चराग़ जला लूँ अगर इजाज़त हो जुनूँ वही है वही मैं मगर है शहर नया यहाँ भी शोर मचा लूँ अगर इजाज़त हो किसे है ख़्वाहिश-ए-मरहम-गरी मगर फिर भी मैं अपने ज़ख़्म दिखा लूँ अगर इजाज़त हो तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो



नज़्म :-

रम्ज़ जौन एलिया


तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ पर इन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन मुज़्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम नहीं पा सकता ज़िंदगी में कभी आराम नहीं पा सकता

 
 
 

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