तथाकथित “मूर्ख और बुद्धिजीवी”
- misal writez
- Oct 2, 2021
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Updated: Jan 9, 2022
अक्सर गांव-कस्बा में कुछ व्यक्ति विशेष के प्रति लोगों का नज़रिया बना दिया जाता है कि वो व्यक्ति “मूर्ख है, हमेशा ग़लत बोलता है” इत्यादि-इत्यादि का, परंतु हकीकत में ऐसा नही होता है। ठीक उसी प्रकार कुछ व्यक्ति विशेष के प्रति लोगों का नज़रिया बना दिया जाता है कि वो व्यक्ति “बुद्धिजीवी है, हमेशा अच्छा ही बोलता है” इत्यादि-इत्यादि का...
अगर कोई समाज आम व्यक्ति कड़वी शब्दों का प्रयोग कर दो-टूक में अपनी बात कह देता हो या कभी गाली के लहज़े में अपना बात कह देता हो। वहीं समाज में ख़ास दूसरा व्यक्ति शब्दों के लतीफ़े बुन कर लंबी-चौड़ी लेख या भाषण लिख देता हो। ऐसी स्थिति में बातों का मूल्यांकन इस बात पर होना चाहिए की लिखने वाला और बोलने वाला का किस उद्देश्य के साथ लिख-बोल रहा है। तथाकथित मूर्ख और तथाकथित बुद्धिजीवी व्यक्ति में फर्क बस इतना होता है कि मूर्ख के पास शब्दों का मुखौटा नहीं होता।
शायद समाज की चिंता दोनों व्यक्ति के अंदर हो सकती है? यह जरूरी नहीं की वह यह बात बोलकर दिलासा दे की वही समाज को लेकर फिक्रमंद है। भावनात्मक रूप से कुछ व्यक्ति विशेष को किसी प्रकार का मोनार्की प्राप्त हो जाने से प्रगतिशील व लोकतांत्रिक समाज को हमेशा परहेज करने की जरूरत है।
___मिसाल© (मेरी प्रथम लेख हरिशंकर परसाई जी से प्रेरित और समर्पित)
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