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मौतों की अकड़ा और निर्लज्ज सत्ता By: Misal

  • Writer: misal writez
    misal writez
  • Jul 23, 2021
  • 1 min read

Updated: May 6, 2022



उस लहर में हर परिवार किसी अपनों को खोया था। बदहाल स्वास्थ्य-व्यवस्था में तड़प- तड़प कर मरते अपनों को देख रोया था। एक देश के निर्लज राजगद्दी ने आज फिर निर्लज्जता दिखा दिया जो प्रत्यक्ष घटित हुआ था सबकुछ, फिर से सबको झूठला दिया मौत मंडराती दिन को क्या-क्या हो रहा था, किस -किस ने अपनों को कंधों पर ढो रहा था किसी को मिली थी अंतिम इज्ज़त तो किसी की लाशें गंगा ढो रहा था मैं कहता हूँ आज फिर से सबको याद दिलाओ न जो भी हुआ था उन दिनों में सबकुछ बेपर्दा दिखलाओ न भूख और बेबसी में जीते हजारों अनाथ- बच्चों के आँसुओं के साथ उन बेवाओं की सिकन भी मुल्क के हुक्मरानों को दिखलाओ न। वो लोग थें जो भुला दिए गए महज़ एक आकड़ा बताकर, जलती चिताएं, तैरती लाशों के कुछ तस्वीरों के साथ “मिसाल!” उस संसद को लानत भी भेजवाओ न ___मिसाल (23/07/2021)




 
 
 

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